Tuesday 6 November 2018

थिओसोफिकल समाज

‘थिओसोफी’ सभी धर्मों में निहित आधारभूत ज्ञान है लेकिन यह प्रकट तभी होता है जब वे धर्म अपने-अपने अन्धविश्वासों से मुक्त हो| वास्तव में यह एक दर्शन है जो जीवन को बुद्धिमत्तापूर्वक प्रस्तुत करता है और हमें यह बताता है की ‘न्याय’ तथा ‘प्यार’ ही वे मूल्य है जो संपूर्ण विश्व को दिशा प्रदान करते है| इसकी शिक्षाएं,बिना किसी बाह्य परिघटना पर निर्भरता के, मानव के अन्दर छुपी हुई आध्यात्मिक प्रकृति को उद्घाटित करती हैं|
थिओसोफी’ क्या है?
‘थिओसोफी’ एक ग्रीक शब्द है;जिसका शाब्दिक अर्थ है-“ईश्वरीय ज्ञान”|यह उन गूढ़ दर्शनों की ओर संकेत करता है और उनके बारे में प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त करना चाहता , जो अस्तित्व और प्रकृति के,विशेष रूप से ईश्वरीय/दैवीय प्रकृति के,पूर्व-अनुमानित रहस्यों से सम्बंधित हैं|सार रूप में यह उस छुपे हुए ज्ञान की ओर संकेत करता है जो व्यक्ति को प्रबोधन और मोक्ष की ओर ले जाता है|थिओसोफर ब्रह्माण्ड के उन रहस्यों और संबंधों को जानने की कोशिश करता है जो ब्रह्माण्ड, ईश्वर व मानवीयता को जोड़े रखते हैं| अतः ‘थिओसोफी’ का उद्देश्य ईश्वरत्व ,मानवीयता तथा ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति का अन्वेषण करना है|इन विषयों के अनुसन्धान के माध्यम से,थिओसोफर ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति एवं उसके उद्देश्य की संगत व्याख्या करना चाहता है|
‘थिओसोफिकल सोसाइटी’ की स्थापना मैडम ब्लावात्सकी और कर्नल अल्कॉट द्वारा 1875 ई में न्यूयॉर्क में की गयी थी ,लेकिन भारतीय समाज एवं संस्कृति में इस दर्शन की जड़ें 1879 ई में ही पनपनी शुरू हुईं |भारत में इसकी शाखा मद्रास प्रेसीडेंसी में स्थापित हुई जिसका मुख्यालय अड्यार में था| भारत में इस आन्दोलन का प्रचार-प्रसार एनी बेसेंट द्वारा किया गया था|थिओसोफी निम्नलिखित तीन सिद्धांतो पर आधारित थी:
1.विश्ववंधुत्व की भावना
2.धर्मं एवं दर्शन का तुलनात्मक अध्ययन
3.अव्याख्यायित रहस्यमयी नियमों को समझने के लिए प्राकृतिक नियमों का अनुसन्धान
‘थिओसोफिस्त’ सभी धर्मों का समान रूप से आदर करते थे|वे धर्मान्तरण के खिलाफ थे और अंतःकरण की शुध्दता तथा पंथ रहस्यवाद में विश्वास रखते थे|थिओसोफिकल सोसाइटी भारत में हिन्दू धर्म के पुनरुत्थान का अभिन्न अंग थी,जिसने कुछ सीमा तक सामाजिक सौहार्द्र की भी स्थापना की|एनी बेसेंट के अनुसार “हिन्दू धर्मं के बिना भारत का कोई भविष्य नहीं है|हिन्दू धर्म वह जमीन है जिस पर भारत की जड़ें जमी हुई है और उससे अलग होने पर भारत वैसा ही हो जायेगा जैसे किसी पेड़ को उसके स्थान से उखाड़ दिया जाये|”
‘थिओसोफिस्तों’ ने जाति एवं अछूत व्यवस्था के उन्मूलन का भी प्रयास किया तथा आत्मसात्वीकरण के दर्शन में विश्वास प्रकट किया| उन्होंने हाशिये के समाज को सामाजिक स्वीकार्यता दिलाने के लिये सच्चे मन से कार्य किया|वे सामाजिक रूप से अस्वीकार्य वर्गों को शिक्षित कर उनकी परिस्थितियों में सुधार लाना चाहते थे|इसीलिए एनी बेसेंट ने अनेक शिक्षा समितियां स्थापित कीं और आधुनिक शिक्षा की पुरजोर वकालत की| शिक्षा,दर्शन एवं राजनीति उन कुछ विषयों में शामिल थे जिन पर ‘थिओसोफिकल सोसाइटी’ ने कार्य किया|
एनी बेसेंट का परिचय:
एनी बेसेंट 1889 ई में ‘थिओसोफिकल सोसाइटी’ में शामिल हुई|वे वेदों एवं उपनिषदों की शिक्षाओं में गहरा विश्वास रखती थीं और भारत को मुक्ति एवं प्रबोधन की भूमि मानती थी|बाद में उन्होंने इसे ही अपना राष्ट्र और स्थायी घर बना लिया |उन्होंने उस समय के भारतीय समाज में व्याप्त बाल-विवाह,अछूत-व्यवस्था और विधवा-पुनर्विवाह की मनाही जैसी बुराइयों के खिलाफ आवाज उठायी|शिक्षा को सभी तक पहुचाने के लिए उन्होंने ‘बनारस सेंट्रल स्कूल’ शुरू किया जो बाद में ‘बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय’ के रूप में परिवर्तित हो गया|दक्षिण भारत में भी उनके प्रयासों से अनेक स्कूलों व महाविद्यालयों की स्थापना की गयी|
एनी बेसेंट ने ‘आयरिश लीग आन्दोलन’ की तर्ज पर  भारत में 1916 ई|  में ‘होम-रूल लीग’ की स्थापना की| एनी बेसेंट एक प्रसिद्ध एवं प्रभावशाली लेखक भी थीं|थिओसोफिकल सोसाइटी के दृष्टिकोण को प्रसारित करने के लिए “द न्यू इंडिया” एवं “कॉमन वील” नाम के दो पत्रों का प्रकाशन भी उनके द्वारा किया गया|हालांकि थिओसोफिकल आन्दोलन का प्रभाव सामान्य-जन की तुलना में बौद्धिक वर्ग पर अधिक पड़ा, फिर भी उसने उन्नीसवीं सदी में अपनी एक पहचान बनायीं|
‘थिओसोफिकल सोसाइटी’ के मुख्य बिंदु
I. ‘थिओसोफिकल सोसाइटी’ के अनुसार चिंतन-मनन, प्रार्थना एवं श्रवण के माध्यम से ईश्वर एवं व्यक्ति के अंतःकरण के मध्य एक विशिष्ट सम्बन्ध की स्थापना की जा सकती है|
II. ‘थिओसोफिकल सोसाइटी’ ने पुनर्जन्म एवं कर्म जैसी हिन्दू मान्यताओं को स्वीकार किया और उपनिषद, सांख्य,योग एवं वेदांत दर्शनों से प्रेरणा ग्रहण की|
III. इसने प्रजाति,जाति,रंग एवं लालच जैसे भेदों से ऊपर उठकर विश्वबंधुत्व का आह्वाहन किया|
IV. सोसाइटी प्रकृति के अव्याख्यायित नियमों और मानव के अन्दर छुपी हुई शक्ति की खोज करना चाहती थी|
V. इस आन्दोलन ने पाश्चात्य प्रबोधन के माध्यम से हिन्दू आध्यात्मिक ज्ञान की खोज करनी चाही |
VI. इस सोसाइटी ने हिन्दुओं के प्राचीन सिद्धांतों तथा दर्शनों का नवीनीकरण किया और  उनसे सम्बंधित विश्वासों को मजबूती प्रदान की|
VII. आर्य दर्शन व धर्मं का अध्ययन तथा प्रचार किया |
VIII. इस सोसाइटी का मानना था कि उपनिषद परमसत्ता,ब्रह्माण्ड व जीवन के सत्य का उद्घाटन करते है|
IX. इसका दर्शन इतना सार्वभौम था कि धर्म के सभी रूपों तथा उपासना के सभी प्रकारों की प्रशंसा करता था |
X. सोसाइटी ने आध्यात्मिक एवं दार्शनिक विमर्शों के अतिरिक्त अपनी अनुसन्धान तथा साहित्यिक गतिविधियों द्वारा हिन्दुओं के जागरण में महत्वपूर्ण योगदान दिया|
XI. इसने हिन्दू धर्म-ग्रंथों का प्रकाशन एवं अनुवाद भी किया |
XII. सोसाइटी ने सुधारों को प्रेरित किया और उन पर कार्य करने के लिए शिक्षा-नीतियाँ तैयार कीं|

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