Tuesday 3 July 2018

बुद्ध की विभिन्न मुद्राएं एवं हस्त संकेत और उनके अर्थ



आप सभी ने बुद्ध की मूर्तियों को कई मुद्राओं के साथ देखा होगा। इन अलग-अलग मुद्राओं में बुद्ध की मूर्तियों को देखकर आपके मन में इन मुद्राओं का अर्थ जानने की इच्छा तो उत्पन्न होती ही होगी।
इस लेख में, हम जानेंगे बुद्ध की 10 विभिन्न मुद्राएं एवं हस्त संकेत और उनके अर्थ।
लेकिन इससे पहले हमें कुछ मूल बातें समझनी होंगी,
जैसे की भारतीय मूर्तिकला का क्या स्वरुप है और ये किसका प्रतिनिधित्व करती है।
भारतीय मूर्तिकला देवत्व का प्रतीकात्मक प्रतिनिधित्व करती है, जिसका मूल और अंत, धार्मिक और आध्यात्मिक मान्यताओं के माध्यम से व्यक्त किया जाता है। इसलिए बुद्ध के अनुयायी, बौद्ध ध्यान या अनुष्ठान के दौरान शास्त्र के माध्यम से विशेष विचारों को पैदा करने के लिए बुद्ध की छवि को प्रतीकात्मक संकेत के रूप में इस्तेमाल करते हैं।

बुद्ध की 10 विभिन्न मुद्राएं एवं हस्त संकेत और उनके अर्थ

1. धर्मचक्र मुद्रा
 Dharmachakra Mudra

इस मुद्रा का सर्वप्रथम प्रदर्शन ज्ञान प्राप्ति के बाद सारनाथ में बुद्ध ने अपने पहले धर्मोपदेश में किया था।  इस मुद्रा में दोनों हाथों को सीने के सामने रखा जाता है तथा बायें हाथ का हिस्सा अंदर की ओर जबकि दायें हाथ का हिस्सा बाहर की ओर रखा जाता है।
2. ध्यान मुद्रा
 Dhyan Mudra

इस मुद्रा को समाधि या योग मुद्रा भी कहा जाता है और यह अवस्था बुद्ध शाक्यमुनि”, “ध्यानी बुद्ध अमिताभ” और “चिकित्सक बुद्ध” की विशेषता की ओर इशारा करती है। इस मुद्रा में दोनों हाथों को गोद में रखा जाता है, दायें हाथ को बायें हाथ के ऊपर पूरी तरह से उंगलियां फैला कर रखा जाता है तथा अंगूठे को ऊपर की ओर रखा जाता है और दोनों हाथ की अंगुलियां एक दूसरे के ऊपर टिका कर रखा जाता है।
3. भूमिस्पर्श मुद्रा
 Bhumisparsa Mudra

इस मुद्रा को “पृथ्वी को छूना” (टचिंग द अर्थ) भी कहा जाता है, जोकि बुद्ध की ज्ञान प्राप्ति के समय का प्रतिनिधित्वकरती है क्योंकि इस मुद्रा से बुद्ध दावा करते हैं कि पृथ्वी उनके ज्ञान की साक्षी है। इस मुद्रा में सीधे हाथ को दायें घुटने पर रखकर हथेली को अंदर की ओर रखते हुए जमीन की ओर ले जाया जाता है और कमल सिंहासन को छूआ जाता है।
4. वरद मुद्रा
 Varada Mudra
यह मुद्रा अर्पणस्वागतदानदेनादया और ईमानदारी का प्रतिनिधित्व करती है। इस मुद्रा में दायें हाथ को शरीर के साथ स्वाभाविक रूप से लटकाकर रखा जाता है, खुले हाथ की हथेली को बाहर की ओर रखते हैं और उंगलियां खुली रहती है तथा बाये हाथ को बाये घुटने पर रखा जाता है।
5. करण मुद्रा
 Karana Mudra
यह मुद्रा बुराई से बचाने की ओर इशारा करती है। इस मुद्रा को  तर्जनी और छोटी उंगली को ऊपर उठा कर और अन्य उंगलियों को मोड़कर किया जाता है। यह कर्ता को सांस छोड़कर बीमारी या नकारात्मक विचारों जैसी बाधाओं को बाहर निकालने में मदद करती है।
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6. वज्र मुद्रा
 Vajra Mudra
यह मुद्रा उग्र वज्र के पांच तत्वोंअर्थात् वायुजलअग्निपृथ्वीऔर धातु के प्रतीक को दर्शाती है। इस मुद्रा में बायें हाथ की तर्जनी को दायीं मुट्ठी  में मोड़कर, दायें हाथ की तर्जनी के ऊपरी भाग से दायीं तर्जनी को छूते (या चारों ओर घूमाते) हुए किया जाता हैं।
7. वितर्क मुद्रा
 Vitarka Mudra
यह बुद्ध की शिक्षाओं के प्रचार और परिचर्चा का प्रतीक है। इस मुद्रा में अंगूठे के ऊपरी भाग और तर्जनी को मिलाकर किया जाता है, जबकि अन्य उंगलियों को सीधा रखा जाता है। यह लगभग अभय मुद्रा की तरह है लेकिन इस मुद्रा में अंगूठा तर्जनी उंगली को छूता है।
8. अभय मुद्रा
 Abhaya Mudra

यह मुद्रा निर्भयता या आशीर्वाद को दर्शाता है जोकि सुरक्षाशांतिपरोपकार और भय को दूर करने का प्रतिनिधित्वकरता है तथा  बुद्ध शाक्यमुनि” और ध्यानी बुद्ध  अमोघसिद्धी की विशेषताओं को प्रदर्शित करती है। इस मुद्रा में दायें हाथ को कंधे तक उठा कर, बांह को मोड़कर किया जाता है और अंगुलियों को ऊपर की ओर उठाकर हथेली को बाहर की ओर रखा जाता है।
9. उत्तरबोधी मुद्रा
 Uttarabodhi Mudra
यह मुद्रा दिव्य सार्वभौमिक ऊर्जा के साथ अपने आप को जोड़कर सर्वोच्च आत्मज्ञान की प्राप्ति को दर्शाती है। इस मुद्रा में दोनों हाथ को जोड़ कर हृदय के पास रखा जाता है और तर्जनी उंगलियां एक दूसरे को छूते हुए ऊपर की ओर होती हैं और अन्य उंगलियां अंदर की ओर मुड़ी होती हैं।
10. अंजलि मुद्रा
 Anjali Mudra

इसे नमस्कार  मुद्रा या हृदयांजलि मुद्रा भी कहते  हैं जो अभिवादनप्रार्थना और आराधना के इशारे का प्रतिनिधित्व करती है। इस मुद्रा में, कर्ता के हाथ आमतौर पर पेट और जांघों के ऊपर होते हैं, दायां हाथ बायें के आगे होता है, हथेलियां ऊपर की ओर, उंगलियां जुड़ी हुई और अंगूठे एक-दूसरे के अग्रभाग को छूती हुई अवस्था में होते हैं।

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