राजा और राजवंश अब इतिहास बन चुके हैं, लेकिन उनके द्वारा तैयार कुछ उपकरण उनके समय की कहानी बताते हैं. ऐसा ही एक ऐतिहासिक उपकरण तमिलनाडु के तंजावुर जिले से करीब 12 किलोमीटर दूर तिरुविसानालुर के शिवोगिनाथर मंदिर की 35 फीट ऊंची दीवार पर स्थित 1,400 वर्षीय सूर्य घड़ी है. वास्तविक तौर पर तमिलनाडु में यही एक “दीवार घड़ी” हैं.
मंदिर के अधिकारियों ने ऐतिहासिक विरासत को फिर से शुरू करने का फैसला किया है, जो चोल राजाओं के असीम ज्ञान और वैज्ञानिक स्वभाव का प्रमाण है.
चोल के राजा परान्तक शासन के दौरान निर्मित दीवार घड़ी में बैटरी या बिजली की आवश्यकता नहीं होती है. एक अर्ध-मंडल की तरह इसको आकार दिया गया है और ग्रेनाइट से खुदी हुई है. इसमें तीन इंच लम्बी पीतल की सुई है जो कि क्षैतिज रेखा के केंद्र में स्थायी रूप से लगाई गई है. जैसे ही सूरज की किरणें सुई पर पड़ती है, सुई की परछाई सही समय बताती है. मंदिर आने वाले अधिकांश भक्त दिन के समय में सुबह छः बजे से लेकर शाम के छः बजे तक सूर्य घड़ी की सुई को देखकर अपने काम-काज का निर्धारण करते है.
घड़ी तब तक चलती है जब तक सूरज की किरणें उस पर पड़ती हैं. लेकिन पीतल की वजह से ग्रैनाइट की सतह पर सुई धुंधली होती जा रही है. इसमें संख्याएं ब्रिटिश द्वारा स्वयं की सुविधा के लिए जोड़ दी गई थी, जो अभी तक मौजूद हैं. मंदिर तंजावुर पैलेस देवस्थानाम द्वारा प्रबंधित पुनर्निर्माण किया जाएगा और घड़ी को एक नया रूप दिया जाएगा.
इस मंदिर की खासियत यह है कि मंदिर में कई धार्मिक अभिप्राय हैं. हर मंदिर की तरह इसमें देवता शिवायोगीनाथर अपनी पत्नी सौंदर्यायकी के साथ गर्भगृह में नहीं विराजमान हैं. यह मंदिर अम्बल सनिधिः दक्षिण की ओर स्थित है जहां सूर्य घड़ी घूमती है. ऐसी मान्यता है कि आठ शिव योगी मुक्ति प्राप्त करके लिंगगम में विलय हो गए थे. इसलिए भगवान शिव का नाम शिवायोगीनाथर पड़ा है. ऐसा कहा जाता है कि जब तक शिव ध्यान में रहते है तब तक अंबल सूर्य की घड़ी की तरफ देखते हुए बाहर इंतजार करते है.
इस लेख से यह जानकारी मिलती है कि 1400 साल पुरानी चोला के समय की यह सूर्य घड़ी बहुत अदभुत है जो कि इतनी प्राचीन होने के बावजूद भी बिना बिजली और बैटरी के चलती है और इस प्राचीन मंदिर की खासियत का भी इस लेख के द्वारा अनुमान लगाया जा सकता है.
मंदिर के अधिकारियों ने ऐतिहासिक विरासत को फिर से शुरू करने का फैसला किया है, जो चोल राजाओं के असीम ज्ञान और वैज्ञानिक स्वभाव का प्रमाण है.
चोल के राजा परान्तक शासन के दौरान निर्मित दीवार घड़ी में बैटरी या बिजली की आवश्यकता नहीं होती है. एक अर्ध-मंडल की तरह इसको आकार दिया गया है और ग्रेनाइट से खुदी हुई है. इसमें तीन इंच लम्बी पीतल की सुई है जो कि क्षैतिज रेखा के केंद्र में स्थायी रूप से लगाई गई है. जैसे ही सूरज की किरणें सुई पर पड़ती है, सुई की परछाई सही समय बताती है. मंदिर आने वाले अधिकांश भक्त दिन के समय में सुबह छः बजे से लेकर शाम के छः बजे तक सूर्य घड़ी की सुई को देखकर अपने काम-काज का निर्धारण करते है.
घड़ी तब तक चलती है जब तक सूरज की किरणें उस पर पड़ती हैं. लेकिन पीतल की वजह से ग्रैनाइट की सतह पर सुई धुंधली होती जा रही है. इसमें संख्याएं ब्रिटिश द्वारा स्वयं की सुविधा के लिए जोड़ दी गई थी, जो अभी तक मौजूद हैं. मंदिर तंजावुर पैलेस देवस्थानाम द्वारा प्रबंधित पुनर्निर्माण किया जाएगा और घड़ी को एक नया रूप दिया जाएगा.
इस मंदिर की खासियत यह है कि मंदिर में कई धार्मिक अभिप्राय हैं. हर मंदिर की तरह इसमें देवता शिवायोगीनाथर अपनी पत्नी सौंदर्यायकी के साथ गर्भगृह में नहीं विराजमान हैं. यह मंदिर अम्बल सनिधिः दक्षिण की ओर स्थित है जहां सूर्य घड़ी घूमती है. ऐसी मान्यता है कि आठ शिव योगी मुक्ति प्राप्त करके लिंगगम में विलय हो गए थे. इसलिए भगवान शिव का नाम शिवायोगीनाथर पड़ा है. ऐसा कहा जाता है कि जब तक शिव ध्यान में रहते है तब तक अंबल सूर्य की घड़ी की तरफ देखते हुए बाहर इंतजार करते है.
इस लेख से यह जानकारी मिलती है कि 1400 साल पुरानी चोला के समय की यह सूर्य घड़ी बहुत अदभुत है जो कि इतनी प्राचीन होने के बावजूद भी बिना बिजली और बैटरी के चलती है और इस प्राचीन मंदिर की खासियत का भी इस लेख के द्वारा अनुमान लगाया जा सकता है.
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