Thursday 20 December 2018

न्यूटन के गति के नियम (Newton's Law of Motion )


न्यूटन ने गति के नियमों का प्रतिपादन 1687 में अपनी पुस्तक प्रिंसीपिया (Principia) में किया। 

प्रथम नियम- कोई वस्तु विराम की अवस्था में है तो वह विराम की अवस्था में ही रहेगी, जब तक कि उस पर कोई बाहय बल लगाकर उसकी अवस्था में परिवर्तन न किया जाए। अर्थात् सभी वस्तुएँ अपनी प्रारंभिक अवस्था को बनाये रखना चाहती हैं। वस्तुओं की प्रारंभिक अवस्था (विराम या गति की अवस्था) में स्वत: परिवर्तन नहीं होने की प्रवृत्ति को जड़त्व (Inertia) कहते हैं। इसीलिए न्यूटन के प्रथम नियम को जड़त्व का नियम भी कहा जाता है। बल वह बाहय कारक है, जिसके द्वारा किसी वस्तु की विराम अथवा गति की अवस्था में परिवर्तन किया जाता है। अत: प्रथम नियम हमें बल की परिभाषा (definition of force) देता है।

जड़त्व के उदाहरण: > > > रूकी हुई गाड़ी के अचानक चल पड़ने पर उसमे बैठे यात्री पीछे की ओर झुक जाते हैं। चलती हुई गाड़ी के अचानक रूकने पर उसमें बैठे यात्री आगे की ओर झुक जाते हैं। गोली मारने से काँच में गोल छेद हो जाता है, परन्तु पत्थर मारने पर वह काँच टुकड़े-टुकड़े हो जाता है। कम्बल को हाथ से पकड़कर डण्डे से पीटने पर धूल के कण झड़कर गिर पड़ते हैं। द्वतीय नियम: वस्तु के संवेग (momentum) में परिवर्तन की दर उस पर आरोपित बल के अनुक्रमानुपाती होती है तथा संवेग परिवर्तन आरोपित बल की दिशा में ही होता है। इस नियम को एक अन्य रूप मी भी व्यक्त किया जा सकता है. द्रव्यमान तथा बल की दिशा में उत्पन्न त्वरण के गुणनफल के बराबर होता है। 

यदि किसी m द्रव्यमान की वस्तु पर F बल आरोपित करने से उसमें बल की दिशा में a त्वरण उत्पन्न होता है, तो द्वतीय नियम के अनुसार, F= ma यदि F = 0 हो, ते a = 0 (क्योंकि m शून्य नहीं हो सकता है) अर्थात् यदि वस्तु पर बाहरी बल न लगाया जाए, तो वस्तु में त्वरण उत्पन्न नहीं होगा। यदि त्वरण का मान शून्य है तो इसका अर्थ कि या तो वस्तु नियत वेग से गतिमान है या विरामावस्था में है। इससे स्पष्ट है कि बल के अभाव में वस्तु अपनी गति अथवा विराम अवस्था को बनाए रखती है। गति के द्वतीय नियम से बल का व्यंजक (Measure of Force) प्राप्त होता है।

बल के मात्रक (Units of Force): SI पद्धति में बल का मात्रक न्यूटन (Newton-N) है। F = ma से, यदि m = 1 किग्रा. तथा a = 1 मीटर/ सेकण्ड हो, तो F = 1 न्यूटन। अत: 1 न्यूटन बल वह बल है, जो 1 किग्रा. द्रव्यमान की किसी वस्तु में 1 मीटर/सेकण्ड का त्वरण उत्पन्न कर दे। बल का एक और मात्रक किग्रा. भार है। इस बल को गुरुत्वीय मात्रक कहते है। 1 किग्रा भार उस बल के बराबर है, जो 1 किग्रा की वस्तु पर गुरुत्व के कारण लगता है।

संवेग (Momentum-p); किसी गतिमान वस्तु के द्रव्यमान तथा वेग के गुणनफल को उस वस्तु का संवेग कहते हैं। संवेग (p) = द्रव्यमान (m) × वेग (V) संवेग एक सदिश राशि है। इसका मात्रक किग्रा. मीटर/सेकेण्ड (kg./ms) होता है।

आवेग ( Impulse-J )- यदि कोई बल किसी वस्तु पर कम समय तक कार्यरत रहे तो बल और समय-अन्तराल के गुणनफल को उस वस्तु का आवेग कहते हैं। आवेग (J) = बल (F) × समय-अन्तराल (t)

द्वतीय निगम (संवेग, आवेग) के उदाहरण > समान वेग से आती हुई क्रिकेट गेंद एवं टेनिस गेंद में टेनिस गेंद को कैच करना आसान होता है। 

क्रिकेट खिलाड़ी तेजी से आती हुई गेंद को कैच करते समय अपने हाथों की गेंद के वेग की दिशा में गतिमान कर लेता है, ताकि चोट कम लगे।

गद्दा या मिट्टी के फर्श पर गिरने पर सीमेण्ट से बने फर्श पर गिरने की तुलना में कम चोट लगती है। गाड़ियों में स्प्रिंग (spring) या शॉक एब्जार्बर (Shock absorber) लगाए जाते हैं ताकि झटका कम लगे।


तृतीय नियम: इस नियम के अनुसार- प्रत्येक क्रिया के बराबर, परन्तु विपरीत दिशा में प्रतिक्रिया होती है। अर्थात् दो वस्तुओं की पारस्परिक क्रिया में एक वस्तु जितना बल दूसरी वस्तु पर लगाती है, दूसरी वस्तु भी विपरीत दिशा में उतना ही बल पहली वस्तु पर लगाती है। इसमें से किसी एक बल को क्रिया व दूसरे बल को प्रतिक्रिया कहते हैं। इसीलिए इस नियम को क्रिया प्रतिक्रिया का नियम (Action-Reaction Law) भी कहते हैं। 

तृतीय नियम के उदाहरण > 2 बंदूक से गोली छोड़ते समय पीछे की ओर झटका लगना। 
नाप के किनारे पर से जमीन पर कूदने पर नाप का पीछे हटना। 
ऊँचाई से कूदने पर चोट लगना। 
रॉकेट का आगे बढ़ना।

संवेग संरक्षण का नियम- न्यूटन के द्वितीय नियम के साथ न्यूटन के तृतीय के संयोजन का एक अत्यंत महत्वपूर्ण परिणाम संवेग संरक्षण का नियम है। इसके अनुसार एक या एक से अधिक वस्तुओं के निकाय (System) पर कोई बाहरी बल नहीं लग रहा हो, तो उस निकाय का कुल संवेग नियत रहता है, अर्थात् संरक्षित रहता है। इसे ही संवेग संरक्षण का नियम कहते हैं। अर्थात् एक वस्तु में जितना संवेग परिवर्तन होता है, दूसरी में उतना ही संवेग परिवर्तन विपरीत दिशा में हो जाता है। अत: जब कोई वस्तु पृथ्वी की ओर गिरती है, तो उसका वेग बढ़ता जाता है, जिससे उसका संवेग बढ़ जाता है। वस्तु भी पृथ्वी को ऊपर की ओर खींचती है, जिससे पृथ्वी का भी ऊपर की ओर संवेग उसी दर से बढ़ जाता है। इस प्रकार (पृथ्वी + वस्तु) का संवेग संरक्षित रहता है। चूंकि पृथ्वी का द्रव्यमान वस्तु की अपेक्षा बहुत अधिक होता है, अत: पृथ्वी में उत्पन्न वेग उपेक्षणीय होती है। रॉकेट के ऊपर जाने का सिद्धान्त भी संवेग संरक्षण पर आधारित है। रॉकेट से गैसें अत्यधिक वेग से पीछे की ओर निकलती हैं, जो रॉकेट के ऊपर उठने के लिए आवश्यक संवेग प्रदान करती है.

रॉकेट प्रणादेन (Rocket Propulsion): किसी रॉकेट की उड़ान उन शानदार उदाहरणों में से एक है, जिनमें न्यूटन का तीसरा नियम या संवेग—संरक्षण नियम स्वयं को अभिव्यक्त करता है। इसमें ईधन की दहन से पैदा हुई गैसें बाहर निकलती हैं। और इसकी प्रतिक्रिया रॉकेट को धकेलती है। यह एक ऐसा उदाहरण है जिसमें वस्तु का द्रव्यमान परिवर्तित होता रहता है क्योंकि रॉकेट में से गैस निकलती रहती है।

घर्षण (Friction): जब कोई वस्तु किसी तल पर फिसलती है तो उसकी गति की विपरीत दिशा में एक प्रतिरोधी बल कार्य करता है, इस बल का घर्षण बल कहते हैं। घर्षण बल तीन प्रकार के होते हैं- 1. स्थैतिक घर्षण बल, 2. सपोँ घर्षण बल 3. लोटनिक घर्षण बल। जब किसी वस्तु को किसी सतह पर खिसकाने के लिए बल लगाया जाए और यदि वस्तु अपने स्थान से नहीं खिसके तो ऐसे दोनों सतहों के मध्य लगने वाले घर्षण बल को स्थैतिक घर्षण बल कहते हैं। जब किसी वस्तु को किसी सतह खिसकने के लिए बल लगाया जाए और यदि वस्तु अपने स्थान से नहीं खिसके तो ऐसे दोंनो सतहों के मध्य लगने वाली घर्षण बल को स्थैतिक घर्षण बल कहते है। जब कोई वस्तु किसी दूसरी वस्तु के सतह पर लुढ़कती है तो इन दोनों वस्तुओं के सतहों के बीच लगने वाला बल लोटनिक घर्षण कहलाता है। दो सतहों के मध्य लगने वाला घर्षण बल उनके क्षेत्रफल पर निर्भर नहीं करता, बल्कि सतहों की प्रकृति पर निर्भर करता है।लोटनिक घर्षण बल का मान सबसे कम और स्थैतिक घर्षण बल का मान सबके अधिक होता है।

घर्षण बल के उदाहरण > घर्षण बल के कारण ही मनुष्य सीधा खड़ा रह पाता है तथा चल पाता है। > घर्षण बल न होने पर हम केले के छिल्के तथा बरसात में चिकनी सड़क पर फिसल जाते है। > यदि सड़कों पर घर्षण न हो तो पहिए फिसलने लगते है।
यदि पट्टे तथा पुली के बीच घर्षण न हो तो पट्टा
मोटर के पहिये नहीं घुमा सकेगा

अभिकेन्द्रीय बल - कोई वस्तु किसी वृत्ताकार मार्ग पर चलती है, तो उस पर एक बल वृत्त के केन्द्र की ओर कार्य करता है। इस बल को ही अभिकन्द्रीय बल कहते हैं। इस बल के अभाव में वस्तु वृत्ताकार मार्ग पर नहीं चल सकती है। यदि कोई m द्रव्यमान का पिंड wचाल से r त्रिज्या के वृत्तीय मार्ग पर चल रहा है, तो उस पर कार्यकारी वृत कू, केन्द्र की ओर आवश्यक अभिकेन्द्रीय बल F=-F होता है।

आपकेन्द्रीय बल ( Centrifugal Force)- अजड़त्वीय फ्रेम (Non-inertial frame) में न्यूटन के नियमों को लागू करने के लिए कुछ ऐसे बलों की कल्पना करनी होती है, जिन्हें परिवेश में किसी पिण्ड से संबंधित नहीं किया जा सकता। ये बल छद्म बल कहलाते है। अपकेन्द्रीय बल एक ऐसा ही जड़त्वीय बल या छद्म बल या जड़त्वीय बल है। इसकी दिशा अभिकेन्द्री बल के विपरीत दिशा में होती है। कपड़ा सुखाने की मशीन, दूध से मक्खन निकालने की मशीन आदि अपकद्रीय बल के सिद्धान्त पर कार्य करती है।

बल-आघूर्ण (Moment of Force)- बल द्वारा एक पिण्ड को एक अक्ष के परित: घुमाने की प्रवृत्ति को बल-आघूर्ण कहते हैं। किसी अक्ष के परित: एक बल का बल-आघूर्ण उस बल के परिमाण तथा अक्ष से बल की क्रिया—रेखा के बीच की लम्बवत् दूरी के गुणनफल के बराबर होता है। (अर्थात् बल-आघूर्ण (T) = बल × आघूर्ण भुजा) यह एक सदिश राशि है। इसका मात्रक न्यूटन मी. होता है।

सरल मशीन ( Simple machines )- यह बल आघूर्ण के सिद्धान्त पर कार्य करती है। सरल मशीन एक ऐसी युक्ति है, जिसमें किसी सुविधानजक बिन्दु पर बल लगाकर, किसी अन्य बिन्दु पर रखे हुए भारत को उठाया जाता है; जैसे उत्तोलक, घिरनी, आनत तल, स्क्रू जैक आदि। > उत्तोलक ( Lever)- उत्तोलक एक सीधी या टेढ़ी दृढ़ छड़ हाती है, जो किसी निश्चित बिन्दु के चारों ओर स्वतंत्रतापूर्वक घूम सकती है। उत्तोलक में तीन बिन्दु होते हैं (i) आलंब (Fulcrum )- जिस निश्चित बिन्दु के चारों और उत्तोलक की छड़ स्वतंत्रतापूर्वक घूम सकती है, उसे आलब कहते हैं। (ii) आयास (Effort)- उत्तोलक के द्वारा जो बोझ उठाया जाता है, अथवा रूकावट हटायी जाती है, उसे आयास कहते है.

(iii) भार (Load) उतोलक के द्वारा जो बोझ उठाया जाता है, अथवा रुकावट हटायी जाती है, उसे भार कहते हैं। 

उत्तोलक के प्रकार— उत्तोलक तीन प्रकार के होते हैं 
(i) प्रथम श्रेणी का उत्तोलक— इस वर्ग के उत्तोलकों में आलब F, आयास E तथा भार W के बीच में स्थित होता है। इस प्रकार के उत्तोलकों में यांत्रिक लाभ 1 से अधिक, एक के बराबर तथा 1 से कम भी हो सकता है। इसके उदाहरण हैं— कैच, झूला, साइकिल का ब्रेक, हैंड पम्प।पिलाश, किल उखारने वाली मशीन शीश झूला, साइकिल का ब्रेक, हैंड पम्प।

(ii) द्वितीय श्रेणी का उत्तोलक- इस वर्ग के उत्तोलक में आलब F तथा आयास E के बीच भार W होता है। इस प्रकार के उत्तोलकों में यांत्रिक लाभ सदैव एक से अधिक होता है। इसके उदाहरण हैं— सरॉता, नींबू निचोड़ने की मशीन, एक पहिए की कुड़ा ढोने की गाड़ी आदि। 

(iii) तृतीय श्रेणी का उत्तोलक— इस वर्ग के उत्तोलकों में आलब F भार W के बीच में आयास E होता है। इसका यांत्रिक लाभ सदैव एक से कम होता है। उदाहरण- चिमटा, किसान का हल, मनुष्य का हाथ।

गुरुत्वकेन्द्र ( Centre of Gravity)- किसी वस्तु का गुरुत्व केन्द्र, वह बिन्दु है जहाँ वस्तु का समस्त भार कार्य करता है, चाहे वस्तु जिस स्थिति में रखी जाए। वस्तु का भार गुरुत्व केन्द्र से ठीक नीचे की ओर कार्य करता है। अत: गुरुत्व केन्द्र पर वस्तु के भार के बराबर उपरिमुखी बल लगाकर हम वस्तु को संतुलित रख सकते हैं।


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