Thursday 20 December 2018

कार्य, उर्जा एवं शक्ति


कार्य (work)- दैनिक जीवन में कार्य का अर्थ किसी क्रिया का किया जाना होता है, जैसे- पढ़ना, लिखना, गाड़ी चलाना आदि। परन्तु भौतिकी में कार्य शब्द का विशेष अर्थ है।, अत: भौतिकी में हम कार्य को निम्नलिखित प्रकार से परिभाषित करते हैं— कार्य की माप लगाए गए बल तथा बल की दिशा में वस्तु के विस्थापन के गुणनफल के बराबर होती है। अत:, कार्य = बल × बल की दिशा में विस्थापन (Work = Force × Displacement Along the Direction) > कार्य दो सदिश राशि का गुणनफल है, परन्तु कार्य एक अदिश राशि है। इसका SI मात्रक न्यूटन मीटर (N.m) होता है, जिसे वैज्ञानिक जेम्स प्रेस्कॉट जूल के सम्मान में जूल (Joule) कहा जाता है और संकेत J द्वारा व्यक्त किया जाता है। 1 जूल कार्य = 1 न्यूटन बल × 1 मीटर (विस्थापन की दिशा में)। अब यदि बल F तथा विस्थापन s एक ही दिशा में नहीं हैं, बल्कि दोनों की दिशाओं के मध्य 0 कोण बनता है, तो कार्य w=F × s, cos[]

इस प्रकार कार्य का मान महत्तम तभी होगा जब बल एवं बल की दिशा में विस्थापन के मध्य 0० का कोण हो, क्योंकि cos 0* = 1 होता है। इसी प्रकार जब बल एवं बल की दिशा में विस्थापन की बीच 90° का कोण हो, तो कार्य का मान शून्य होगा, क्योंकि cos 90* = 0 होता है।

ऊर्जा ( Energy) > किसी वस्तु में कार्य करने की क्षमता को उस वस्तु की ऊर्जा कहते हैं। ऊर्जा एक अदिश राशि है। इसका SI मात्रक जूल (Joule) है। वस्तु में जिस कारण से कार्य करने की क्षमता आ जाती है, उसे ऊर्जा कहते हैं। ऊर्जा दो प्रकार की होती है— गतिज ऊर्जा एवं स्थितिज ऊर्जा।

गतिज ऊर्जा ( Kinetic Energy)- किसी वस्तु में गति के कारण जो कार्य करने की क्षमता आ जाती है, उसे उस वस्तु की गतिज ऊर्जा कहते हैं। यदि m द्रव्यमान की वस्तु v वेग से चल रही हो, तो गतिज ऊर्जा (KE) होगी— K.E = 1/2 mV* अर्थात् किसी वस्तु का द्रव्यमान दोगुना करने पर उसकी गतिज ऊर्जा दोगुनी हो जाएगी और द्रव्यमान आधी करने पर उसकी गतिज उर्जा हो जाएगी। इसी प्रकार वस्तु का वेग दोगुना करने पर वस्तु की गतिज ऊर्जा चार गुनी हो जाएगी और वेग आधा करने पर वस्तु की गतिज ऊर्जा 1/4 गुनी हो जाएगी। गतिज ऊर्जा एवं संवेग में सम्बन्ध K.E. = p*/2m जहाँ p = संवेग = mv अर्थात् संवेग दो गुणा करने पर गतिज ऊर्जा चार गुनी हो जाएगी।

किसी वस्तु में उसकी अवस्था (slate) या स्थिति (Position) के कारण कार्य करने की क्षमता को स्थितिज ऊर्जा कहते हैं, जैसे- बाँध बना कर इकट्ठा किए गए पानी की ऊर्जा, घड़ी की चाभी में संचित ऊर्जा, तनी हुई स्प्रिंग या कमानी की ऊर्जा। गुरुत्व बल के विरुद्ध संचित स्थितिज ऊर्जा का व्यंजक है PE = mgh जहा m = द्रव्यमान, g = गुरुत्वजनित त्वरण, h = ऊँचाई ऊर्जा संरक्षण का नियम (Law of conservation of Energy) ऊर्जा का न तो निर्माण होता है न विनाश अर्थात् विश्व की कुल ऊर्जा नियत रहती है। ऊर्जा का केवल एक रूप से दूसरे रूप में रूपान्तरण होता है। जब भी ऊर्जा किसी रूप में लुप्त होती है, ठीक उतनी ही ऊर्जा अन्य रूपों में प्रकट हो जाती है। यह ऊर्जा संरक्षण का नियम कहलाता है।


शक्ति ( Power)-कार्य करने की दर की शक्ति कहते हैं। यदि किसी कर्ता द्वारा w कार्य t समय में किया जाता है, तो कर्ता की शक्ति w/t होगी। शक्ति का SI मात्रक वाट (watt) है, जिसे वैज्ञानिक जेम्स वाट के सम्मान में रखा गया है और संकेत w द्वारा व्यक्त किया जाता है. 
1 वाट= 1 न्यूटन मीटर/ सेकंड मशीनों की शक्ति को अश्व शक्ति (Horse Power-H.P) में भी व्यक्त किया जाता 
1 H.P= 746 वाट

वाट सेकण्ड ( ws )- यह ऊर्जा या कार्य का मात्रक है.
वाट घंटा ( wh )— यह भी ऊर्जा या कार्य का मात्रक है। (wh = 3600 जूल).
किलोवाट घंटा ( kwh)– यह भी ऊर्जा (कार्य) का मात्रक है। 
1 kwh = 1000 वाट घंटा = 1000 वाट × 1 घंटा  = 1000 × 3600 सेकण्ड = 3.6 × 10* वाट सेकण्ड = 3.6 × 10" वाट सेकण्ड = 3.6 × 10" जूल w, kw, Mw तथा H,P शक्ति के मात्रक हैं। ws, wh, kwh कार्य अथवा ऊर्जा के मात्रक हैं।



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