वैदिक काल प्राचीन भारतीय संस्कृति का एक काल खंड है। उस दौरान वेदों की रचना हुई थी। इस सभ्यता की जानकारी के स्रोत वेदों के आधार पर इसे वैदिक सभ्यता का नाम दिया गया। समाज पितृसत्तात्मक था। संयुक्त परिवार की प्रथा प्रचलित थी। परिवार का मुखिया 'कुलप' कहलाता था। परिवार कुल कहलाता था। कई कुल मिलकर ग्राम, कई ग्राम मिलकर विश, कई विश मिलकर जन एवं कई जन मिलकर जनपद बनते थे। वेदों के अनुसार वैदिक काल में पांच प्रकार की राज्य प्रणाली होती थी:
1. राज्य (केंद्रीय साम्राज्य): राजा द्वारा नियोजित
2. भोज्य (दक्षिणी साम्राज्य): भोज द्वारा शासित
3. स्वराज्य (पश्चिमी साम्राज्य): सर्वत द्वारा शासित
4. वैराज्य (उत्तरी साम्राज्य): विराट द्वारा शासित
5. सामराज्य (पूर्वी साम्राज्य): सम्राट द्वारा शासित
इस काल में राजाओं की शक्ति की वैधता पुजारी अथवा ब्राहमण द्वारा बलिदान (यज्ञ) के अनुष्ठानों से बढ़ता था और इस बीच उन अधिकारियों को परिभाषित करता है जो राजा को अपने राज्य मामलों में अधीनस्थ करते थे।
वैदिक काल के रत्निन और अधिकारी
रत्निन और अधिकारी
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कार्यक्षेत्र (विवरण)
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पुरोहित
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मुख्य पुजारी, जिसे कभी-कभी राष्ट्रगोप के रूप में भी जाना जाता था।
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सेनानी
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सेनाध्यक्ष
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व्रजपति
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चरागाह भूमि का अधिकारी (प्रभारी)
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जिवाग्रिभा
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पुलिस अधिकारी
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स्पासा/दूत
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जासूस, जो राजा के लिए संदेशवाहक का कार्य करता था।
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ग्रामानी
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गांव प्रमुख
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कुलपति
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परिवार का मुखिया
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मध्यमासी
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विवादों पर मध्यस्थ करने वाला
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भागादुघा
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राजस्व समाहर्ता
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संग्रिहित्री
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कोषाध्यक्ष
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महिषी
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मुख्य रानी
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सुता
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सारथी और न्यायालय मंत्री
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गोविन्कर्ताना
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खेल और वन का रखवाला
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पलगाला
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संदेशवाहक
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क्षत्री
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राजमहल का बडा अफसर
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अक्षवापा
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लेखापाल
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अथापति
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मुख्य न्यायाधीश
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तक्षण
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बढ़ई
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राजा लोगों की सहमति और अनुमोदन के आधार पर शासन किया करता था। जनजाति की रक्षा करना, राजा का प्रधान कर्तव्य था जिसमें उपरोक्त रत्नियों और अधिकारियों की सहायक की भूमिका होती थी। प्रशासनिक इकाई को पांच भागों में बांटी गयी थी- कुल, ग्राम, विश, जन और राष्ट्र। भारता, मत्स्य, यदु और पुरु जैसे ऋग वैदिक काल के जनजातीय साम्राज्य थे। इस काल खंड में नियमित राजस्व प्रणाली नहीं थी लेकिन राज्य की अर्थव्यवस्था का आधार स्वैच्छिक कर जिसको बाली कहा जाता था और युद्ध में जीता गया धन हुआ करता था।
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