Monday, 28 August 2017

प्राचीन भारत में गुप्त एजेंसियों की उत्पत्ति कैसे हुई

मानव ग्रंथों का सबसे प्राचीन ग्रंथ रिग वेद में भी जासूसी के बारे में उल्लेख किया गया है. जासूसी के बारे में सन्दर्भ मिस्र, बेबीलोन, अस्सैरिया, ग्रीस और चीन की प्राचीन सभ्यताओं में भी देखे जा सकते हैं.
चीन के ऋषि सन त्सू ने जासूसी पर एक पुस्तक 'पिंग फा द आर्ट ऑफ़ वॉर' लिखी थी जो कि सबसे पहली पुस्तक मानी जाती है.
पुराणों के मुख्य देवताओं में से एक देवता वरुण को गुप्त सेवाओं अर्थार्त जासूसी का संचालक माना जाता है. 
यहाँ तक की माघ, सबसे अधिक कृत्रिम और सुविख्यात कवि और विचारक ने कहा कि जासूसी की सहायता के बिना अंतरिक्ष यान भी अस्तित्व में नहीं हो सकता है।
प्राचीन भारत में गुप्त एजेंसियों को उत्पीड़न के साधन के रूप में नहीं बल्कि शासन के एक उपकरण के रूप में माना जाता था। इसीलिए गुप्त एजेंटों को ‘राजा की आंख’ भी कहाँ जाता था.
भारतीय इतिहास में व्याख्या की गई है कि प्राचीन भारतीयों ने इस जासूसी की  कला में काफी विशेषज्ञता हासिल की थी. तकनीक और परिचालन पद्धति उनके द्वारा अपनाई गईं अत्यधिक उन्नत थीं और आज उपयोगी साबित हुई हैं.
वरुण से लेकर चाणक्य की गुप्त निति की बात करें तो कई महाकाव्य जैसे महाभारत, रामायण, पुराण, कालिदास, माघ और तमिल संगम साहित्य के साहित्यिक कार्यों के अभूतपूर्व ऊंचाइयों में भी इसका उल्लेख किया गया हैं.
चाणक्य को जासूसी, पाखंड, धोखा और असंतोष पैदा करने की उनकी तकनीक ने उन्हें कौटिल्य का शीर्षक दिया, जिसका मतलब है कुटिल. यहां तक कि कूटनीतिज्ञ और राजनेताओं ने चाणक्य के सिद्धांत को “ साम, दाम, दंड, भेद” का अनुसरण किया ताकि वे अपने उद्देश्यों को प्राप्त कर सकें. यहा तक कि चाणक्य की निति को भारत और इसकी मुख्य सूचना एजेंसी, द रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (आरएडब्ल्यू) द्वारा भी अपनाया गया था.

No comments:

Post a Comment