औपनिवेशिक काल के दौरान ब्रिटिश सरकार ने कई अधिनियम पारित किया था जो उनकी औपनिवेशिक सरकार को मजबूत कर सके और अदालती प्रणाली के माध्यम से अपनी बुनियादी सुविधाओं का विस्तार, कानूनी प्रक्रिया और विधि को स्थापित कर सके। लेकिन ब्रिटिश शासन के मूल औपनिवेशिक चरित्र और भारतीय लोगों के जीवन पर इसके विनाशकारी प्रभाव ने भारत में एक शक्तिशाली साम्राज्यवादी आंदोलन को जन्म दिया। भारत के लोगो ने अपने पारस्परिक मतभेदों को छोड़ और अंग्रेजों की शाही नीतियों के खिलाफ़ एक हो गए।
भारत में क्रांतिकारी गतिविधियों को रोकने के लिए ब्रिटिश सरकार के कानून
औपनिवेशिक काल के दौरान ब्रिटिश सरकार ने कई दमनकारी कानूनों को पारित किया था जिनमें से कुछ महत्वपूर्ण कानूनों पर नीचे चर्चा की गई है:
1. राजद्रोह की रोकथाम के लिए बैठक अधिनियम (1907 ईस्वी) [Prevention of seditious meetings Act]
इसे राजद्रोह को बढ़ावा देने या सार्वजनिक शांति में परेशानी पैदा करने की सार्वजनिक बैठकों की रोकथाम के लिए अधिनियमित किया गया था। इस अधिनियम के तहत सरकार राजनीतिक बैठकों को प्रतिबंधित करने की शक्ति ब्रिटिश राज की शाही विधान परिषद द्वारा प्रदान की गयी थी।
यह अधिनियम तब पारित की गयी थी जब ब्रिटिश सरकार की खुफिया विभागों ने ये आशंका जताई थी की गदर आंदोलन के आढ़ में भारत में राजनीतिक हिंसा का षड्यंत्र रचा जा रहा है।
2. विस्फोटक पदार्थ अधिनियम (1908 ईस्वी) [Explosives Substances Act]
इस अधिनियम के अनुसार "विस्फोटक" बनाने में जितने भी सामग्री तथा उपकरण, मशीन और कार्यान्वयन का कोई भी हिस्सा शामिल होते हैं वो दंडनीय अपराध के दायरा में आएगा। अगर किसी भी व्यक्ति की संलिप्तता इस तरह की गतिविधियों में पायी गयी तो उनको इस अधिनियम के तहत कानूनी कार्यवाही की जाएगी।
3. भारतीय आपराधिक कानून संशोधन अधिनियम (1908 ईस्वी) [Indian Criminal Law Amendment Act]
यह अधिनियम ने सार्वजनिक शांति के खिलाफ कार्य कर रहे खतरनाक संगठनों के निषेध के लिए त्वरित मुकद्दमा करने तथा उनकी शीघ्र परीक्षण और सुनवायी की वकालत करता है।
4. अख़बार अधिनियम (1908 ईस्वी) [Newspaper Act]
यह अधिनियम हत्याओं के नाम पर लोगो की भावना भड़काने वाले समाचार पत्रों की सुर्खियों के रोकथाम के लिए पारित किया गया था। वास्तव में, इस अधिनियम के द्वारा तत्कालीन ब्रिटिश सरकार प्रेस की स्वतंत्रता तथा सरकार के खिलाफ कुछ भी प्रकाशित किये जाने पर रोक लगाना चाहती थी। इस अधिनियम द्वारा चरमपंथियों को इस कदर दबा दिया गया की वे उस समय एक मजबूत राजनीतिक दल को व्यवस्थित करने की स्थिति में नहीं रहे।
अरविंदो घोष जैसे चरमपंथि ने अपने हथियार दाल दिया था और पांडिचेरी में निष्क्रिय अवस्था में चले गए। बिपीन चंद्र पाल ने अस्थायी रूप से राजनीति छोड़ दी थी। लाला लाजपत राय इंग्लैंड चले गए। चरमपंथी राष्ट्रवाद का विचार अस्थायी रूप से निष्क्रिय हो गया। बाद में यह क्रांतिकारी राष्ट्रवाद के रूप में उभरा।
5. प्रेस एक्ट (1910 ईस्वी) [Press Act]
इस अधिनियम तहत ब्रिटिश सरकार ने सभी प्रकार के प्रकाशनों पर सख्त सेंसरशिप लगा दी थी। इस अधिनियम के द्वारा ब्रिटिश सरकार मुख्य तौर पर प्रेस के वित्तीय प्रतिभूतियां पर नियंत्रण लगाना चाहती थी।
6. भारतीय नियमों के बहु-फैंसी रक्षा (1915 ईस्वी) [Multi-fanged Defence of Indian Rules]
यह प्रथम विश्व युद्ध के दौरान राष्ट्रवादी और क्रांतिकारी गतिविधियों को कम करने के इरादे से 1915 ईस्वी में भारत के गवर्नर जनरल द्वारा अधिनियमित आपातकालीन आपराधिक कानून लाया गया था। इस अधिनियम ने कार्यपालिका की शक्ति व्यापक कर दिया था जैसे- निवारक हिरासत, परीक्षण के बिना प्रशिक्षण, लेखन, भाषण, और आंदोलन का प्रतिबंध।
इसे पहली बार 1915 ईस्वी में पहली लाहौर षड्यंत्र परीक्षण के दौरान लागू किया गया था, और इस अधिनियम ने पंजाब में गदर आंदोलन और बंगाल में अनुष्लन समिति को कुचलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
7. रौलेट अधिनियम (1919 ईस्वी) [Rowlatt Act]
इस अधिनियम को भारत की ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत में उभर रहे राष्ट्रीय आंदोलन को कुचलने के उद्देश्य से निर्मित किया था। यह कानून सर सिडनी रौलेट की अध्यक्षता वाली समिति की शिफारिशों के आधार पर बनाया गया था। इसके अनुसार ब्रिटिश सरकार को यह अधिकार प्राप्त हो गया था कि वह किसी भी भारतीय पर अदालत में बिना मुकदमा चलाए और बिना दंड दिए उसे जेल में बंद कर सकती थी। इस क़ानून के तहत अपराधी को उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज करने वाले का नाम जानने का अधिकार भी समाप्त कर दिया गया था। इस कानून के विरोध में देशव्यापी हड़तालें, जूलूस और प्रदर्शन होने लगे। गाँधीजी ने व्यापक हड़ताल का आह्वान किया। इस सत्याग्रह में उन लोगों को भी शामिल गया था जिन्हे होमरूल लीग ने राजनीतिक रूप से जागरूक बनाया था।
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